"पृथ्वी के पास हमारी जरूरतों के लिए पर्याप्त संसाधन हैं लेकिन हमारे लालच के लिए नहीं।"
महात्मा गांधी का यह अकेला कथन ही "पर्यावरण संरक्षण " की उन तमाम परिभाषाओं को जीवंत कर देता है। जो यह समाज सदियों से देता आ रहा है........खैर,आज यह कहने में हमें गर्व होगा कि हम आधुनिकता के इस दौड़ में अन्य लोंगो से कहीं आगे हैं......,हाँ...शायद यह सच भी है, क्योंकि विकास के आगे हमने आँखें बड़ी खोल रखी हैं। लेकिन जब भी हम उसी आंख से विकास के साथ पर्यावरण की स्थिति को देखते हैं तो हमारी आँखें धुंधली नज़र आती हैं। यह पहली बार नही है कि बदलते समय के साथ पर्यावरण की परिभाषायें भी बदली हैं, लेकिन हमें यह समझना होगा कि 'पर्यावरण' एक जीवित सच्चाई है जिसके बिना मानव शून्य है।
लेकिन हम लोंगों में से ही कईयों ने धुंधली आंखों को साफ किया और सच्चाई को स्वीकार कर कुछ कर गुजरने का निर्णय लिया। उनमें से ही एक किरदार "पीपल मैन" का है। जो कि दिल्ली के मुखर्जी नगर में प्रतियोगी परीक्षाओं के तैयारी के साथ ही पर्यावरण संरक्षण के लिये निरंतर कार्य कर रहें हैं। आइये जानते हैं 'पीपल मैन' कहलाने तक का सफर........
'पीपल मैन; कौन ?
नाम - ऑनरेरी डॉo रघुराज प्रताप सिंह
माता - श्रीमती चुन्नी देवी जी
पिता - श्रीमान जगदेव जी
पता - ग्राम कपसा, तहसील मौदहा, जिला हमीरपुर (उत्तर प्रदेश )
यात्रा - गांव की उसी सरलता और सादगी में रघुराज का भी जन्म हुआ और उसमें भी गांव का झलक शामिल हुआ। जो गांव के सभी बच्चों में अमूमन पाया जाता है। लालन पालन बड़ी मां-बड़े पिता के सानिध्य में हुआ। प्राम्भिक शिक्षा गांव के ही प्राइमरी स्कूल में हुआ। पढ़ने में कोई खास दिलचस्पी नही थी इसलिए पांचवी फेल हो गया। दोबारा दाखिला लेकर पांचवी पास किया। छ:वीं में पहाड़ा न सुना पाने की घटना ने उसे बड़ी चोट दी। ये हर समय बड़ों द्वारा बच्चों से पूछा जाने वाला सबसे पसंदीदा प्रश्न रहा है। इसी तरह आगे की कक्षाओं की भी पढ़ाई पूरी हुई। साथ में कई दुर्गुणों को भी शामिल किया लेकिन समय के साथ सब सुधर भी गया। इसी बीच घर की आर्थिक स्थिति ठीक नही होने के कारण उसे सूरत जाना पड़ा, होटल और कंपनी में भी काम करना पड़ा। आगे पढ़ाई भी जारी रहा तथा रघुराज खेल कूद में सक्रिय होने के कारण स्कूल की कई प्रतियोगिताओ में भी भाग लिया करता रहता।
जिंदगी के इसी उतार-चढ़ाव में प्यार मुहब्बत भी परवान चढ़ा लेकिन सब बदलाव की राह पर बढ़ता गया। कुछ समय बाद रघुराज दिल्ली गया और वहां उसे पेण्ट का काम, घर बनाने व शिफ्टिंग का काम भी करना पड़ा। ऐसे ही जीवन चलता जा रहा था तभी जिंदगी ने एक नया मोड़ लिया और उसे गांव वापस आना पड़ा। अब वह गांव पर ही रह कर कुछ करने का सोचा, उसने अपने समय के सदुपयोग के लिए गांव के बच्चों को निःशुल्क पढ़ाना शुरू किया। यही उत्साह ने उसे आगे आईएएस (IAS) बनने के लिए प्रेरित किया और वह अपने पास के शहर बाँदा चला गया, तैयारी भी शुरू कर दिया। साथ में प्राइवेट जॉब और ग्रेजुएशन भी किया।
वर्ष 2018 के बाद उसे पुनः दिल्ली जाने का अवसर मिला। वह इस बार दिल्ली आईएएस बनने के उम्मीद से गया था। वहां जाकर उसने सबसे पहले एक कोचिंग संस्थान में एडमिशन लिया और तैयारी में लग गया। इसी बीच उसके दिमाग मे कुछ करने के लिए हलचल हुआ, इस बार उसका ध्यान 'पर्यावरण संरक्षण' की ओर गया। उसने एक लक्ष्य बनाया की मैं 2024 तक देश भर में एक लाख "पीपल के पेड़" लगाऊंगा क्योंकि पीपल के महत्व से हम सभी परिचित हैं। वह अपने अभियान पर जोरों से काम भी करने लगा। कुछ ही समय बीते थे कि पूरी दुनिया में कोरोना जैसी महामारी ने दस्तक दे दिया और उसे वापस अपने घर जाना पड़ा। इस बार MA में एडमिशन लिया और गांव पर ही पर्यावरण के लिये काम करने लगा। पर्यावरण के प्रति उसका रुचि बढ़ता गया, कुछ समय बाद वह उसका हॉबी भी बन गया। कोरोना के दौरान देश में ऑक्सीजन की कमी के कारण उसने भी अपने एक मित्र को खोया। ऐसी परिस्थितियों ने उसे प्रकृति के महत्व को काफी करीब से जानने का अवसर दिया। अब उसे अपने काम की महत्ता समझ आने लगी। उसने और लगन के साथ पर्यावरण के प्रति अपने काम को जारी रखा।
इसी दौरान वह वर्ष 2020 में पहली बार आईएएस की प्राम्भिक परीक्षा में बैठा और असफल रहा.....इसके पहले भी वह प्रतियोगी परीक्षाओं को देता रहा है। वर्ष 2021 में उसका घर आना-जाना लगा था लेकिन उसका पेड़ लगाना जारी रहा। अब वह समय आया जब रघुराज को पहली बार एक सामाजिक संगठन ने "पीपल मैन'' का नाम दिया, इससे उसका उत्साह कई गुना बढ़ गया। वह पर्यावरण संरक्षण के प्रति और सक्रियता से काम करने लगा। अब उसने कई राज्यों में पेड़ लगाना शुरू किया तथा लोगों से अधिक से अधिक पेड़ लगाने का आग्रह भी करता गया। यह कार्य उसने जारी रखा, जिसका परिणाम यह रहा कि उसे कई संस्थाओं द्वारा प्रोत्साहन व अनेकों सम्मान भी मिला। जो निम्नवत हैं.......
सुभाष चंद्र ग्रांटली अवार्ड, द बेस्ट एनवायरनमेंट अवार्ड 2021, एनवायरनमेंट वॉरियर्स अवार्ड, कल्कि गौरव अवार्ड 2022, ग्लोबल गांधी रत्न अवार्ड 2022, स्वामी विवेकानंद सेवा सम्मान 2022 इत्यादि अनेकों सम्मान मिला। साथ ही वर्ष 2022 में निरोजा ग्रीन इंडिया परिवार फाउंडेशन ने दिल्ली का Green Ambassador बनाया तथा Colombia Pacific virtual university mathura uttar pradesh द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि भी दिया गया। वर्तमान समय में भी उसका अभियान जारी है और वह दिन-प्रतिदिन अपने कर्तव्य की ओर अग्रसर है। आज लोग उसके विचारों को सराहते हैं। वह प्रकृति के प्रति अपने प्यार को लेकर निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है.........जरूरत है कि हम भी ऐसे लोगों का सहपथिक बनकर, अपने पर्यावरण को नया जीवन दें......।
(धन्यवाद !)
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